जून के महिने में ट्रेनिंग की शुरुआत हमने कॉल साइन से की जो की मुझे मज़ेदार बात सीखने को मिली कि हम बच्चो को कैसे एक मजेदार गतिविधी करके कक्षा में एंगेज कर सकते हैं।
इसके साथ साथ हमने विज़न, S.W.O.T, नॉर्थ स्टार, समानता वैल्यूज, ज़ूम-इन ज़ूम-आउट, लीडरशिप इन एजुकेशन, पीबीएल प्रोजेक्ट्स, आदि इन सब टॉपिक्स पे हमने डीप डाइव किया। परंतु इन सब में से पीबीएल पर हमारी खूब चर्चा हुई। इन सब में से मेरा सबसे जायदा ध्यान पीबीएल पर गया। पीबीएल में हम बच्चो को गतिविधि के माध्यम से पढ़ाते हैं। जैसे मेरा जो अनुभव रहा पीबीएल को लेकर जब मेने शुरुआत की पीबीएल की तो मुझे खुद भी इतनी समझ नही बन पाई थी कि कैसे बच्चो के साथ इंप्लीमेंट करना हैं। ट्रेनिंग से पहले जब मैंने एक प्रोजेक्ट बच्चो के साथ किया था तो खुद की जितनी समझ बनी थी उसके अकॉर्डिंग किया। परंतु जब ट्रेनिंग में हमने पीबीएल की बारीकियों के बारे में चर्चा की तो उसके 7 एलिमेंट्स पर बात की। पीबीएल बाहर देशों में भी बच्चो को कराया जाता हैं और हमारे स्कूल के बच्चे भी पीबीएल कर रहे हैं ये अपने आप में एक प्राउड फीलिंग हैं के जो बाहर देशों के बच्चे कर रहे है वह हमारे गवर्नमेंट स्कूल के बच्चे भी कर रहे है। जिन 7 एलिमेंट्स की हम बात करे तो वो इस परकार है।
चैलेंजिंग प्रॉब्लम्स एंड क्वेश्चंस
सस्टेन्ड इंक्वायरी
परमाणिकता
पब्लिक प्रोडक्ट
क्रिटिक एंड रिवीजन
रिफ्लेक्शंस
स्टूडेंट वाइस एंड चॉइस
अगर इन 7 एलिमेंट की बात करे तो चैलेंजिंग प्रॉब्लम्स में आता है कि हर प्रोजेक्ट्स मे एक ऐसा प्रश्न है जिससे बच्चे जूझे और उसके बारे में चर्चा करे एवं उसका जवाब खोजे।
बच्चे प्रोजेक्ट्स के दौरान प्रश्न को हल करने के लिए निरंतर पूछताछ करते रहे और उनके मन में एक जिज्ञासा बनी रहे ।
हम अगर प्रमाणिकता पर बात करे तो ये एलिमेंट्स दर्शाता है की जब हम बच्चो को प्रोजेक्ट्स कराए तो गतिविधियों एवं उदाहरणों को उनके संदर्भ से जोड़े।
हर प्रोजेक्ट्स में हमे एंड प्रोडक्ट कुछ न कुछ चाहिए बच्चो से जैसे मे खुद का उदहारण दू तो मेने कहानी वाला प्रोजेक्ट्स बच्चो के साथ किया था। इसमें बच्चो को एक कहानी खुद से बनानी थी। इसमें एंड प्रोडक्ट कहानी निकल कर आया। इस तरह हर प्रोजेक्ट्स में कुछ न कुछ पब्लिक प्रोडक्ट निकलकर आता है।
प्रोजेक्ट्स करते हुए बच्चे उसे विचार करके कर पाये। फैसिलिटेटर को इस बात का ध्यान रखना चाहिए के बच्चों को विचार करने के लिए पर्याप्त मौक़े बनाये जाये।
पी बी एल में बच्चो की आवाज और अपनी मर्जी होनी चाहिए। ये गतिविधि करते हुए निर्णय लेने के लिए स्वंतत्र महसूस करे एवं उनके विचारों को गतिविधियों में जगह मिलनी चाहिए।
पीबीएल को लेकर मेरा निजी तौर पर ये पक्ष है कि बच्चो को इस प्रकार की गतिविधियों से पढ़ने और लिखने का मौक़ा ज़रूर मिलना चाहिए है। बच्चे के मन में पढ़ाई एक बोझ नहीं बल्कि सीखने का रचनात्मक तरीक़ा बन जाती है। साथ ही साथ बच्चे अपने आस पास के वातावरण को देखकर सीखते है जिससे बच्चे लंबे समय तक अपनी सीख को याद रखते है।
By - Afreen
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