परिवर्तन कैसे आता है?
- Samanta
- Jun 25
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हर साल की तरह इस साल भी बालवाटिका में नए बच्चों का आना शुरू हुआ। जब ये नन्हें बच्चे छोटे-छोटे कदमों से पहली बार बालवाटिका में आते हैं, तो उनके साथ उनके माता-पिता भी होते हैं – कुछ चिंतित, कुछ उत्साहित। शुरू-शुरू में माँ या पापा को छोड़कर एक नए माहौल में आना बच्चों के लिए थोड़ा मुश्किल होता है। लेकिन धीरे-धीरे जो बदलाव मैंने देखे, वो बहुत ही खुश करने वाले और प्रेरणादायक हैं।
शुरुआती दिनों में बच्चे माता-पिता के बिना रुकने में हिचकिचाते थे। लेकिन अब वे धीरे-धीरे खेलने लगे हैं, और उन्हें बालवाटिका का माहौल अपना लगने लगा है। कुछ बच्चे अब बड़े बच्चों के साथ मिलकर खेलते हैं, चित्र बनाते हैं और छोटी-छोटी गतिविधियों में भाग लेते हैं।

एक बच्ची है शाइस्ता परवीन, जो पहले कभी बालवाटिका नहीं आती थी। उसका घर बालवाटिका से काफी दूर है, लेकिन अब वह रोज आने लगी है। वह अब बाकी बच्चों के साथ घुल-मिल गई है और हर गतिविधि में उत्साह से भाग लेती है। उसकी आत्मविश्वास और सीखने की जिज्ञासा देखकर बहुत अच्छा लगता है।
इसी तरह कुछ और छोटे बच्चे जो पहले बालवाटिका में रुकते नहीं थे, अब धीरे-धीरे खुद आकर शामिल होने लगे हैं। कुछ तो अपने बड़े भाई-बहनों के साथ आकर पूरे समय रुके रहते हैं।
अब तो कुछ बच्चे मेरे पास आकर बैठते हैं, मुझसे सवाल पूछते हैं और बातें करते हैं। ये बातचीत बहुत जरूरी है, क्योंकि इससे बच्चों की बोलने और समझने की क्षमता बढ़ती है और हमारे बीच एक भरोसे का रिश्ता बनता है।

सबसे अच्छी बात यह है कि बच्चे अब केवल खेलने तक सीमित नहीं हैं। वे अब मेरे साथ टीएलएम (शैक्षणिक सामग्री) बनाने में भी मदद करते हैं – जैसे खिलौनों को समेटना, रंग भरना या अन्य छोटे-छोटे काम करना। इन छोटी कोशिशों से बालवाटिका का माहौल और भी अच्छा बन रहा है।
यह बदलाव बच्चों में आत्मनिर्भरता और टीम में काम करने की भावना बढ़ा रहा है। साथ ही, पूरे केंद्र का वातावरण भी पहले से बेहतर हो रहा है।
मेरा हमेशा यही प्रयास रहेगा कि बच्चों को ऐसा माहौल मिले जहाँ वे खुलकर अपनी बात कह सकें, अपनी जिज्ञासाएं ज़ाहिर कर सकें और हर दिन कुछ नया सीख सकें।
By Aamrin Jahan (SEEDS Educator)
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