नए सफर की दस्तक
- Samanta
- Jun 26
- 2 min read
इस महीने का पूरा ध्यान बच्चों के प्रवेश उत्सव पर रहा। मेरी कोशिश यही रही कि ज़्यादा से ज़्यादा बच्चे आंगनवाड़ी में आएं। इसके लिए मैंने बार-बार समुदाय में जाकर माता-पिताओं से बात की। उन्हें समझाया कि पढ़ाई का मतलब सिर्फ कॉपी-किताब नहीं होता, बल्कि बच्चों को एक ऐसा माहौल मिलना ज़रूरी है जहाँ वे खेल-खेल में सीख सकें। मैंने उन्हें बालवाटिका में आमंत्रित किया यह देखने के लिए कि वहां बच्चे क्या कर रहे हैं, कैसे सीख रहे हैं और किन गतिविधियों में भाग ले रहे हैं।

प्रवेश और विदाई समारोह एक साथ रखा गया। जो बच्चे स्कूल जाने वाले थे, उन्हें एक-एक ट्रॉफी और पेंसिल दी गई। यह एक छोटा सा लेकिन उनके साथ बिताए समय को सम्मान देने का तरीका था। पेरेंट्स से कहा कि आप खुद आकर देखें कि हम बच्चों का स्वागत कैसे कर रहे हैं, ताकि उन्हें लगे कि उनका बच्चा एक खास माहौल में समय बिता रहा है।

उस दिन बच्चों के लिए गेम्स और गतिविधियाँ भी रखी गईं । लेकिन ये सब हमने बच्चों की पसंद से चुना था। जो गाने उन्हें पसंद थे, जिन खेलों में वे सबसे ज़्यादा शामिल होते हैं, वही सब उस दिन रखा गया। जब बच्चों ने कहा, आज तो हमारी पसंद का सब कुछ हुआ, तो लगा कि सच में हम सही दिशा में हैं।
मैंने एक फोटो फ्रेम भी बनाया जिसमें बच्चों ने तस्वीरें खिंचवाईं। बच्चों की मुस्कान देखकर, दिल को बहुत सुकून मिला। मैडम ने भी कहा कि बच्चों को इस तरह का स्वागत बहुत खास महसूस कराता है।
गर्मी इस बार बहुत ज़्यादा थी। बालवाटिका में पंखा नहीं होने से बच्चों को असुविधा हुई, जिससे उनकी उपस्थिति थोड़ी कम हो गई। लेकिन मैं रोज़ पेरेंट्स से कहती रही थोड़ा जल्दी आकर ले जाएँ, लेकिन बच्चों को ज़रूर भेजें। क्योंकि यहाँ वे सिर्फ पढ़ना नहीं, बोलना, मिलना, खेलना और जीवन को समझना भी सीख रहे हैं।

इस महीने हमारी ऑफलाइन मीटिंग भी थी, जिसमें बहुत कुछ सीखने को मिला- बच्चों की रुचि, पेरेंट्स से संवाद और खुद की भूमिका को बेहतर तरीके से निभाने के रास्ते।
By Pooja (SEEDS Educator)
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